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Channel: अध्ययन -कक्ष –लघुकथा
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लघुकथा की गुणवत्ता और लेखन की प्रतिबद्धता

वर्तमान समय में लघुकथा का एक लंबा इतिहास उसके पीछे आकर खड़ा हो गया है। लघुकथा ही एक ऐसी विधा हो गई है, जो सर्वाधिक लोकप्रिय भी है, जिसमें सर्वाधिक काम हो रहा है और जिसमें निरंतर कई नए और पुराने लेखक...

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लघुकथाओं का सामाजिक दृष्टिकोण

जब मलयालम के कथाकार मित्र ने मुझे यह खुले मन से कहा–हिन्दी में लघुकथाएँ प्रामाणिक एवं प्रभावी ढंग से लिखी जा रही है। मलयालम भाषा में हिन्दी की लघुकथाओं का अनुवाद हो रहा है इससे लगता है हिन्दी की...

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लघुकथा के स्वरूप और समीक्षा का सवाल

कई बार सवाल है कि श्रेष्ठ लघुकथा का स्वरूप कैसा हो? इसका दूसरा पक्ष यह भी है की लघुकथा की समीक्षा का मानदंड क्या है? मैं लिख भी दूँ कि कुछ शास्त्रनुमा लक्षण ,मगर अगले ही क्षण मुझे कहना पड़ेगा- नहीं...

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श्रेष्ठ लघुकथाओं से गुज़रते हुए

पहले मैं लघुकथाओं को कोई विशेष महत्त्व नहीं देता था–उन्हें मैं ‘दोयम दर्ज़े का साहित्य’ मानता था, या कहूँ साहित्य मानता ही न था–बोध कथा, नीति कथा, अखबारी रिपोर्टिंग,हास्य–व्यंग्य चुटकुले की श्रेणी में...

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सूक्ष्‍म एवं गहन जीवन दृष्‍टि की परिचायक लघुकथाएँ:

सुकेश साहनी समकालीन धारा के प्रमुख लघुकथाकार है। इन्होनें विविध संदर्भों पर साधिकार लेखन किया है। इनकी लघुकथाओं की शिल्पगत नवीनता और कथ्य की ताज़गी ने पाठकों को सदैव आकर्षित किया है। सुकेश साहनी ने...

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डॉ.शकुन्तला किरण जी से बातचीत

डॉ. लता अग्रवाल की डॉ.शकुन्तला किरण जी से बातचीत   कम शब्दों में बहुत-कुछ कहने की कला है लघुकथा—डॉ. शकुन्तला किरण   [ साथियो ! लघुकथा के क्षेत्र में आदरणीय डॉ॰ शकुन्तला ‘किरण’ जी के  नाम को  किसी...

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लघुकथा को गरिमा प्रदान करने वाला कथाकार : रमेश बतरा-डॉ0 सतीशराज पुष्करणा

हिन्दी–लघुकथा के पुनरुत्थान काल के आठवें दशक में लघुकथा को जिन कुछ लोगों ने सार्थक दिशा दी है, इसे हाशिए से उठाकर मुख्य धारा से जोड़ा, उनमें रमेश बतरा का नाम अग्रगण्य है। रमेश बतरा उन दिनों कमलेश्वर के...

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लघुकथा के पुरोधा: डॉ.सतीशराज पुष्करणा

लघुकथा नगर, महेन्द्रू पटना-800006: यह पता रहा एक लम्बे अर्से तक। कोई मकान नम्बर नहीं , गली नम्बर नहीं, बस लघुकथा नगर। यह एक ऐसे आदमी का पता रहा है , जो लघुकथा में ही जागता, लघुकथा में ही स्वप्न देखता।...

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लघुकथा की विकास-यात्रा में उत्तर प्रदेश का योगदान

समकालीन लघुकथा का औपचारिक आरंभ 1971 से माना जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि लघुकथा का जन्म 1971 में हुआ है। लघ्वाकारीय कथात्मक रचनाओं से हमारा पुरातन साहित्य भरा पड़ा है। प्राप्त जानकारियों के अनुसार...

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समकालीन लघुकथा में संघर्ष चेतना

समकालीन लघुकथा में गद्य-साहित्य के विविध रूपों की तरह पीड़ित शोषित एवं दमित जन की उपस्थिति एवं उसकी संघर्ष चेतना के प्रति गहरे रचनात्मक सरोकार लघुकथा को एक गद्य रूप ही नहीं रहने देते बल्कि उसे अधिक...

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लघुकथा में गढ़ंत और पुरस्कृत लघुकथाएँ

लघुकथा में गढ़ंत और पुरस्कृत लघुकथाएँ : सुकेश साहनी ,लेख को पढ़ने के लिए निम्नलिखित लिन्क को क्लिक कीजिए- लघुकथा में गढ़ंत और पुरस्कृत लघुकथाएँ

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मधुदीप की लघुकथाओं में प्रयोगधर्मी प्रवृत्तियाँ

सामान्यतः साहित्य में स्थापित परम्पराओं को लाँघकर किया गया सोद्देश्य सृजन-कर्म प्रयोगधर्मी साहित्य की श्रेणी में आता है। यहाँ स्थापित परम्परा से आशय विधागत स्थापनाओं और मानकों की रूढ़ स्वीकार्यता से है।...

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हिन्दी लघुकथा के क्षेत्र में रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की ऊँचाई

प्रस्तावना: सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना के परिणामस्वरूप आधुनिक हिन्दी लघुकथा का खेमकरण सोमन प्रादुर्भाव बीसवीं सदी के आठवें दशक से माना जाता है। लघुकथा विधा के लिए पुनर्स्थापना काल के रूप में...

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लघुकथा : जैसा मैंने जाना : हरदर्शन सहगल

पिछले कई–कई सालों से लघुकथाएँ, लिखी–पढ़ी, सुनी सुनाई जा रही है। लघुकथाओं के पैरवीकार भी बहुत सारे हो चले हैं। लघुकथा सम्मेलन भी प्राय: होते रहते हैं। सभी माध्यमों से लघुकथा के मानदंडों आदि की विवेचना...

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लघुकथा में स्त्री

नव लघुकथाकारों पर हमारे वरिष्ठ लघुकथाकारों ने काफी कलम चलाई है। नए आयोजन भी किए हैं और नई किताबें भी निकाली हैं। यह एक तरह से अच्छा है। आने वाली पीढ़ी को तैयार करना, आने वाले खतरों के लिए अलर्ट करना,...

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लघुकथा और भाषिक प्रयोग

भाषा मनुष्य का आत्मिक स्वरूप है, जिसके बिना उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती।भाव , विचार , चिन्तन , कल्पना सबकी उड़ान भाषा से ही सम्भव है।इन सबकी अभिव्यक्ति ही उसे सामाजिक प्राणी बनाती है।...

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‘सलाम दिल्ली’ का समीक्षात्मक अध्ययन

‘हिंदी-लघुकथा-जगत् में अनेक रचनाकारों ने अपनी क़लम चलाई है और इस विधा की विकास-यात्रा में अपना-अपना नाम दर्ज करवाया है। आधुनिक हिंदी-लघुकथा के लेखकों में अशोक लव भी पांक्तेय हैं। लघुकथा ही एक मात्र ऐसी...

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लघुकथा का विराट मिशन: मधुदीप

मधुदीप हमारे बीच नहीं रहे ! यह साधारण वाक्य नहीं है। एक गहरा उत्ताप इस “बीच “में समाया है। यह उत्ताप एक मित्र के जाने का नहीं है। एक लेखक के अलविदा होने का नहीं है। यह कुछ खाने और पाने मात्र का नहीं...

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कमल चोपड़ा की लघुकथाओं में स्त्री- विमर्श

हिंदी लघुकथाकाश में कमल चोपड़ा उत्कृष्ट और सुप्रतिष्ठित लघुकथाकार हैं | १९९० में उनका पहला लघुकथा संग्रह ‘अभिप्राय’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था और उत्तरोत्तर ‘अन्यथा’, ‘फंगस’, ‘अकथ’, ‘अनर्थ’ आदि लघुकथा...

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डॉ. सतीशराज पुष्करणा : लघुकथा के पुरोधा

जब हम हिन्दी लघुकथा पर विचार करते हैं, तो आधुनिक लघुकथा के बीज हम भारतेन्दु हरिश्चंद्र की लघुकथाओं में पाते हैं। 1874 ई. का वह समय जब हमारा देश परतंत्रता का संकट झेल रहा था, उस समय की स्थितियों एवं...

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लघुकथा : सृजन भूमि और समालोचना

साहित्य एक व्यापक संज्ञा है और विधाएँ उसकी अभिव्यक्ति का सहज प्रतिबिम्बन। विधाओं की विषयगत या भावगत अनुरूपता होती है। मसलन गीत के लिए जो अंतरंग भाव सघनता की लय चाहिए तो कथा-कुल के लिए गद्य का पठार |...

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संवेदना जाग्रत करती लघुकथाएँ

छूटा हुआ सामान (लघुकथा संग्रह) -लेखिका: डॉ.शील कौशिक ,प्रकाशक: देवशीला पब्लिकेशन, पटियाला, पंजाब-147001, प्रथम संस्करण: 2021, मूल्य: 250 रुपये , पृष्ठ :120 वर्तमान में हिन्दी-लघुकथा के क्षेत्र में...

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लघुकथा का रचना–कौशल एवं प्रस्तुति योजना

किसी भी रचना के सृजन के समय उसे कलात्मक सौंदर्य प्रदान करने के लिए उपयोग में लायी गयी प्रविधियों को रचना कौशल कहा जाता है। यानी प्रस्तुतीकरण का वह विशिष्ट तरीका जो रचना को कलात्मक सौंदर्य प्रदान करने...

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लघुकथा के सामाजिक सरोकार

लघुकथा में लघुता उसका प्राणतत्त्व है; लेकिन लघुता का तात्पर्य किसी बात को सार रूप में प्रस्तुत करना   नहीं। फुलचुही/ फुलसुँघी किसी बड़ी चिड़िया का मिनिएचर नहीं। वह अपने आप में पूर्ण है। यही तथ्य लघुकथा...

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लघुकथा के सामाजिक सरोकार-2

शिक्षा-जगत् का समाज मनोविज्ञान यदि उत्तरदायित्व का पालन किया जाए, तो शिक्षक का कार्य सर्वाधिक कठिन है। शिक्षक के कार्य को अन्य व्यवसाय या नौकरी की तरह नहीं देखा जा सकता । एक माता/ पिता अपनी 2-3 सन्तान...

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लघुकथाः सामाजिक सरोकार-3

 सामाजिक जीवन और व्यवस्था सामाजिक जीवन में व्यवस्था का बहुत महत्त्व है। घर-परिवार  से लेकर दफ़्तर तक, सामाजिक व्यवहार से लेकर राजनीति तक, रोज़मर्रा के सामाजिक जीवन तक, देश से लेकर देशान्तर तक। व्यक्ति के...

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लघुकथा-साहित्य में वात्सल्य

            मुख्य रूप से, माता-पिता के हृदय में होने वाला, अपनी संतान के प्रति स्वाभाविक प्रेम-स्नेह का भाव ‘वात्सल्य’ कहलाता है। इसमें संतान के प्रति संरक्षण, विभिन्न सरोकार, चिंताएँ, सपनों की उड़ान...

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लघुकथा: वर्ष 2022 में पंजाबी लघुकथा (मिन्नी कहाणी) में नए प्रयोग और अन्य...

साल 2022 अपना रास्ता तय कर इतिहास के पन्नों में दर्ज होने जा रहा है। प्रकृति का नियम है कि जो बना है आखिर एक न एक दिन उसे अंत तक जाना होता है।  यह एक सामान्य घटना है कि दिन, महीने, साल बदलते रहते हैं।...

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लघुकथा के सामाजिक सरोकार-4

साधारण और विशिष्ट व्यक्तित्व किसी विशेष परिवार में जन्म लेने  से, किसी पद- प्रतिष्ठा के कारण नहीं बनते; बल्कि  विशिष्ट व्यक्तित्व का मूल आधार है-संवेदना, एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति को समझना। सुकेश...

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हिन्दी लघुकथाओं में व्यंग्य-चित्रण

हिंदी-साहित्य में अन्य विधाओं की भांति व्यंग्य भी एक स्वतंत्र विधा तो है ही, इसी के साथ व्यंग्य, साहित्य में एक रस की भूमिका का भी निर्वाह करता है । यह नाटक में मिला तो नाटक व्यंग्यात्मक नाटक बन जाता...

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जीवन के संत्रास को व्यक्त करती लघुकथाएँ

शिवनारायण लघुकथा रचनाशीलता के स्तर पर लघुता में प्रभुता का दर्शन है। समकालीन जीवन के तिक्त यथार्थ को कम से कम शब्दों में व्यापक संवेदना के साथ जिस शिल्प में प्रस्तुत किया जाता है, उसे लघुकथा कहते हैं।...

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मैं लघुकथा पर काम करता हूँ!

मैं क्या लिखता हूँ या कैसे लिखता हूँ, इससे अधिक जरूरी है कि मैं इस पर बात करूँ कि मैं क्यों लिखता हूँ? मैं लिखने के लिए प्लाट (कथानक) या साधारण शब्दों में कहूँ कि सामग्री या लिखने योग्य घटना कहाँ से...

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लघुकथा के विविध आयाम (कथ्य एवं शिल्प)

जीवन की सार्थकता के दो अनिवार्य सहयोगी घटक हैं-प्रकृति और मानव।  दोनों एक दूसरे के अनिवार्य पूरक हैं। एक की उपेक्षा, दूसरे को दूसरे को भी अशक्त या अप्रासंगिक बना देती है। मानव के न होने पर भी, प्रकृति...

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अध्ययन-कक्षः लघुकथा के विविध आयाम (कथ्य एवं शिल्प)-2

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना! अपने देश में हर दूसरा आदमी ज्ञानी, मानवतावादी, सभी इंसान बराबर हैं, सबका ईश्वर एक है, सबको समान दृष्टि से देखना चाहिए, जनहित सर्वोपरि आदि-आदि का उपदेश देने के लिए...

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लघुकथा में प्रयोग

रचना में प्रयोग निरुद्देश्य नहीं किए जाते। उनका उद्देश्य बौद्धिक विलास करना भी नहीं होता, अपितु रचना की शक्ति को उभारना, ताकि पाठक उसे सही परिप्रेक्ष्य में तीव्रता के साथ महसूस कर सके। जैसे कला-कला के...

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लघुकथा के विविध आयाम (कथ्य एवं शिल्प)- 3

जीवन एक पुस्तक है, वह पुस्तक, जिसके हर संस्करण में आवश्यकता एवं परिस्थिति के कारण कुछ अध्याय जुड़ते जाते हैं,  कुछ अध्याय समयातीत होने के कारण हटाए भी जाते हैं। नई पीढ़ी का जीवन  पाँच दशक पहले जैसा...

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लघुकथा लेखन और रचनात्मकता

लेखन’ एक सामान्य शब्द है, जिसका मूल अर्थ केवल लिखना है। जो लिखा गया , वह निरर्थक से लेकर सार्थक तक कुछ भी हो सकता है। ‘लेखन’ के ध्वनित अर्थ से किसी गुणात्मकता जैसी विशिष्टता का बोध नहीं होता है। लेखन...

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लघुकथा लेखन और रचनात्मकता-2

प्रेम, प्रणय, अनुराग, स्नेह  आदि बहुत सारे शब्द हैं, जो हमारे अन्तर्मन की विशद व्याख्या करते हैं। ‘प्रेम’ वास्तव में वह शब्द है, जिसकी कितनी भी व्याख्या क्यों न की जाए, फिर भी अधूरी है। यह जीवन की वह...

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‘तोता’लघुकथा की सृजन -प्रक्रिया

किसी लघुकथा के सर्जन में बरसों भी लग सकते हैं। चुटकियों में लघुकथा लिख लेने वालों को इस पर हैरानी हो सकती है। यहाँ अपना अनुभव साझा करने से पूर्व स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं यहाँ किसी उत्कृष्ट या कालजयी...

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लघुकथा- शिल्प में संकेतों का उपयोग (टिप्पणी )

  लघुकथा के क्षेत्र में जब मैं बिल्कुल शैशवावस्था में  थी,  मुझे याद है तब मैं आदरणीय सतीश दुबे जी से पहली बार मिली और उन्हें अपनी कुछ लघुकथा में दिखाई।  तब उन्होंने उस वक्त नई दुनिया में छपी मेरी...

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लघुकथा में प्रेम की अभिव्यक्ति-डॉ.उपमा शर्मा

जीवन के सबसे जटिल अनुभवों में से एक अभिव्यक्ति, प्रेम जिसे ठीक से परिभाषित अवश्य ही नहीं किया जा सकता है; लेकिन समझा अवश्य जा सकता है। प्रेम के बिना जीव पूर्ण भी नहीं है। प्यार एक बहुत ही गहरा, भावुक...

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लघुकथा में प्रेम की अभिव्यक्ति- 2

गतांक से आगे… व्यक्तित्व के समायोजन के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अभिव्यक्ति को मुख्य साधन माना है। अभिव्यक्ति ही वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने मनोभावों को प्रकाशित करता तथा अपनी भावनाओं को रूप...

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सुषमा गुप्ता की लघुकथाओं का मर्म

डॉ. सुषमा गुप्ता कथा के वैविध्यपूर्ण विषयों और प्रस्तुति के लिए लघुकथा-जगत् में एक चर्चित नाम है। नए विषयों  की नब्ज़ पर पकड़, शिल्प  की  नितान्त निजी शैली, चिन्तन का एक व्यापक क्षेत्र, अनुभवों  की...

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लघुकथा के कथानक की प्रकृति और पुरस्कृत लघुकथाएँ

निरंतर बढ़ती लोकप्रियता के बीच ‘कथादेश अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता-16’ का आयोजन संपन्न हो गया और 17 वें आयोजन की घोषणा कर दी गई है। साहित्य-जगत् में ‘कथादेश मासिक’ द्वारा निरंतर आयोजित इस...

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जयशंकर प्रसाद की लघुकथाएँ

जयंशकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी साहित्य के उन गिने-चुने साहित्यकारों में से एक हैं, जिनके साहित्य में भारतीय संस्कृति, जनचेतना, उदात्तता, मानव मूल्यों के प्रति चिंता एवं मनोभूमि के उतार-चढ़ाव का सजग अवगाहन...

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लघुकथा में शीर्षक का महत्त्व

दुनिया में प्रत्येक जीव व वस्तु को एक नाम दिया गया है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक नाम होता है, उसकी पहचान। इसी तरह से प्रत्येक साहित्यिक कृति का भी अपना एक नाम होता है, उसका शीर्षक। अकसर कहा जाता है...

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हिन्दी लघुकथा में विकलांग-विमर्श

सतीश राज पुष्करणा  साहित्य की यह विशेषता है कि वह अपने समय को पूरी ईमानदारी से न मात्र रेखांकित करता चलता है अपितु उसे कलात्मक ढंग से सार्थक एवं सटीक अभिव्यक्ति भी प्रदान करता जाता है। साहित्य को...

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लघुकथा में संवाद

लघुकथा में एकबीजीय कथानक (कथावस्तु) वर्गीय प्रतिनिधित्व करते हुए भूनतम पात्र (चरित्र), व्यज्ञ्जक संक्षिप्त संवाद, वर्णित परिवेश की संकेतात्मकता, प्रकरते हुए परिस्थिति-अंकन, सरल-सहज बोलचाल का भाषिक...

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हिन्दी–लघुकथा के उल्लेखनीय हस्ताक्षर : रमेश बतरा

हिन्दी–लघुकथा के पुनरुत्थान काल के आठवें दशक में लघुकथा को जिन कुछ लोगों ने सार्थक दिशा दी है, इसे हाशिए से उठाकर मुख्य धारा से जोड़ा, उनमें रमेश बतरा का नाम अग्रगण्य है। रमेश बतरा उन दिनों कमलेश्वर...

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श्याम सुन्दर अग्रवाल की लघुकथाओं की पड़ताल

हिन्दी–लघुकथा का उद्भव यदि हम मुंशी हसन अली की लघुकथाएँ से मानें , तो वर्तमान तक आते–आते लघुकथा लगभग 142 वर्ष की विकास–यात्रा तय कर चुकी है। जिसके विकास का दूसरा पड़ाव भारतेन्दु की लघुकथाएँ हैं,...

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