पुरस्कृत लघुकथाएँ : लेखकीय दायित्वबोध और अनुशासन
विभिन्न स्तरों पर हो रहे कुछ गम्भीर प्रयासों के बावजूद गुणवत्ता की दृष्टि से लघुकथा के क्षेत्र में छाया कोहासा छँटता दिखाई नहीं दे रहा। गत वर्षों की भाँति इस वर्ष भी बड़ी संख्या में लेखकों ने कथादेश...
View Articleकथा–सम्राट प्रेमचंद की लघुकथाएँ : एक दृष्टि
कथा–सम्राट प्रेमचंद की लघुकथाएँ : एक दृष्टि डॉ सतीशराज पुष्करणा वेदों में कथा–सूत्र भले ही प्राप्त होते हों, किन्तु ‘कथा’ की सही पहचान हमें ‘अग्नि पुराण’ के निम्न श्लोक से ही होती है :– आख्यायिका, कथा,...
View Articleपारस दासोत: एक प्रयोगधर्मी लघुकथाकार
कुछ रचनाकार समय के साथ नहीं चलते ; समय से आगे चलते हैं या पीछे । पारस दासोत समय से आगे चलने वाले रचनाकार है । यह रचनाकार अवरोध –विरोध की ओर आँख उठाकर नहीं देखता । इसे चलने से मतलब है । पाठक इसकी रचना...
View Articleपद्मश्री रामनारायण उपाध्याय से मुकेश शर्मा की बातचीत
जब तक समीक्षक ईमानदार नहीं होंगे,लघुकथा का समीक्षा–पक्ष पुष्ट नहीं होगा- रामनारायण उपाध्याय प्रश्न – लघुकथा का साहित्य में क्या स्थान है? उत्तर – साहित्य में जैसे उपन्यास और कहानी कथा विधा की अलग–अलग...
View Articleलघुकथाओं के सजग शिल्पकार : सुरेश शर्मा
आज वर्ष 2014 के पड़ाव पर बैठकर जब हम 1970 से अभी तक के लेखन की पड़ताल करते हैं तो एक लम्बी फिल्म की तरह सारा इतिहास निगाहों के सामने से गुजरता है। लघुकथा के शैशव काल में लघुकथा के सामने बहुत सारी...
View Articleहिन्दी लघुकथा का परिप्रेक्ष्य
पिछले कुछ वर्षों में साहित्यिक विधाओं में लघुकथा का प्रचलन बड़े जोर–शोर से हुआ है। प्रमुख कहानी–पत्रिका ‘सारिका’ द्वारा लघुकथाओं के दो विशेषांक प्रकाशित करने के बाद लेखक का ध्यान इस विधा की ओर भी...
View Articleरामेश्वर काम्बोज की अर्थगर्भी लघुकथाएँ
‘पड़ाव और पड़ताल’ भाग–2 के प्रकाशन के पश्चात् दूरभाष पर भाई मधुदीप से वार्ता के दौरान निर्देश प्राप्त हुए कि ‘पड़ाव और पड़ताल’ के आगामी खंड के लिए भाई रामेश्वर काम्बोज ‘हिंमाशु’ जी की लघुकथाओं पर मुझे...
View Articleइक्कीसवीं सदी के लघुकथाकार और उनकी लघुकथाएँ
जीवन एक अविरल धारा है जो बहते हुए आगे बढ़ती जाती है, जिसमें बहुत कुछ पीछे छूट जाता है, तो बहुत कुछ नया जुड़ता भी जाता है। वस्तुतः यही है जीवन की विकास-यात्रा । ठीक इसी प्रकार साहित्य और उसकी तमाम विधाएँ...
View Articleअतिरंजना और फैंटेसी में लिपटा क्रूर सामाजिक सत्य
सुकेश साहनी कई दशकों से हिन्दी लघुकथा साहित्य के परिवर्द्धन में सक्रिय हैं। उनकी रचनाएँ कई भाषाओं में अनूदित और चर्चित रही हैं। सुकेश का लेखकीय व्यक्तित्व अपने समशील रचनाकारों की तरह यथार्थ की पकड़ और...
View Articleफामूर्लाबद्ध लेखन से परे युगल की समर्थ लघुकथाएँ
लघुकथा समकालीन साहित्य की एक अनिवार्य और स्वाया विधा के रूप में स्थापित हो गई है। नई सदी में यह सामाजिक बदलाव को गति देने में महवपूर्ण भूमिका निभा रही है। विशेष तौर पर मूल्यों के क्षरण के दौर में अनेक...
View Articleसामाजिक सरोकारों की छवियाँ
लघुकथा और कहानी में पर्याप्त अन्तर है। यह अंग्रेजी साहित्य के आधार पर हिन्दी में विकसित हुई विधा है–केवल यही बात नहीं है। असल में, मुझे लगता है कि लघुकथा प्रतीकात्मक शैली में गम्भीर संवेदना को व्यक्त...
View Articleबलराम की लघुकथाएँ
आधुनिक लघुकथाकारों की सबसे सक्रिय पाँत के लघुकथाकार हैं बलराम। उनकी सक्रिय लघुकथा–लेखन तक ही सीमित नहीं है, उसके वृहत् सम्पादन और सौन्दर्यशास्त्र के निर्माण की दिशा में भी वह सक्रिय रहे हैं। यही कारण...
View Articleजोगिन्दर पाल की लघुकथाएँ
लघुकथा न्यूनतम शब्दों में किसी एक कथा–बिम्ब को अभियक्त करने की विधा है। आज की लघुकथा की प्रकृति भौतिक है, जो सीधे यथार्थ जीवन और जगत से जुड़ा है। लघुकथा सामाजिक विसंगतियों पर कुठाराघात करनेवाली विधा...
View Articleपुरस्कृत लघुकथाएँ : लेखकीय दायित्वबोध और अनुशासन
विभिन्न स्तरों पर हो रहे कुछ गम्भीर प्रयासों के बावजूद गुणवत्ता की दृष्टि से लघुकथा के क्षेत्र में छाया कोहासा छँटता दिखाई नहीं दे रहा। गत वर्षों की भाँति इस वर्ष भी बड़ी संख्या में लेखकों ने कथादेश...
View Articleकथा–सम्राट प्रेमचंद की लघुकथाएँ : एक दृष्टि
कथा–सम्राट प्रेमचंद की लघुकथाएँ : एक दृष्टि डॉ सतीशराज पुष्करणा वेदों में कथा–सूत्र भले ही प्राप्त होते हों, किन्तु ‘कथा’ की सही पहचान हमें ‘अग्नि पुराण’ के निम्न श्लोक से ही होती है :– आख्यायिका, कथा,...
View Articleपारस दासोत: एक प्रयोगधर्मी लघुकथाकार
कुछ रचनाकार समय के साथ नहीं चलते ; समय से आगे चलते हैं या पीछे । पारस दासोत समय से आगे चलने वाले रचनाकार है । यह रचनाकार अवरोध –विरोध की ओर आँख उठाकर नहीं देखता । इसे चलने से मतलब है । पाठक इसकी रचना...
View Articleपद्मश्री रामनारायण उपाध्याय से मुकेश शर्मा की बातचीत
जब तक समीक्षक ईमानदार नहीं होंगे,लघुकथा का समीक्षा–पक्ष पुष्ट नहीं होगा- रामनारायण उपाध्याय प्रश्न – लघुकथा का साहित्य में क्या स्थान है? उत्तर – साहित्य में जैसे उपन्यास और कहानी कथा विधा की अलग–अलग...
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आज वर्ष 2014 के पड़ाव पर बैठकर जब हम 1970 से अभी तक के लेखन की पड़ताल करते हैं तो एक लम्बी फिल्म की तरह सारा इतिहास निगाहों के सामने से गुजरता है। लघुकथा के शैशव काल में लघुकथा के सामने बहुत सारी...
View Articleहिन्दी लघुकथा का परिप्रेक्ष्य
पिछले कुछ वर्षों में साहित्यिक विधाओं में लघुकथा का प्रचलन बड़े जोर–शोर से हुआ है। प्रमुख कहानी–पत्रिका ‘सारिका’ द्वारा लघुकथाओं के दो विशेषांक प्रकाशित करने के बाद लेखक का ध्यान इस विधा की ओर भी...
View Articleरामेश्वर काम्बोज की अर्थगर्भी लघुकथाएँ
‘पड़ाव और पड़ताल’ भाग–2 के प्रकाशन के पश्चात् दूरभाष पर भाई मधुदीप से वार्ता के दौरान निर्देश प्राप्त हुए कि ‘पड़ाव और पड़ताल’ के आगामी खंड के लिए भाई रामेश्वर काम्बोज ‘हिंमाशु’ जी की लघुकथाओं पर मुझे...
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