हिन्दी लघुकथा में समीक्षा की समस्याएँ एवं समाधन
हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार-समीक्षा अर्थात् अच्छी तरह देखना, जाँच करना-सम्यक् ईक्षा या ईक्षाणम् । किसी वस्तु, रचना या विषय के सम्बन्ध् में सम्यक् ज्ञान प्राप्त करना, प्रत्येक तत्त्व का विवेचन करना...
View Articleलघुकथा और शास्त्रीय सवाल
लघुकथा ज्यों–ज्यों फैलाव ले रही है, त्यों–त्यों उससे कुछ सवालों को अकारण ही जोड़कर स्वयं को उभारने की कोशिश भी होती रही है। ऐसी स्थिति में रचना और आलोचना तथा इसके रिश्तों पर बुरा असर पड़ा है। वे...
View Articleभारतीय लघुकथाओं में स्त्री-पुरुष सम्बन्ध
स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर लिखी गई लघुकथाओं में लघुकथाकारों ने विभिन्न स्थितियों का बहुत ही बारीकी से विश्लेषण किया है। प्रमुख बात यह है कि लघुकथाकारों के पात्र निराशावादी नहीं हैं, वे क्षणिक...
View Articleलघुकथाओं में स्त्री-विमर्श
स्त्री विमर्श का आरम्भ कईं लोग देह मुक्ति से करते है, कि कम से कम स्त्री को अपनी देह का अधिकार तो मिले, अपनी देह का मनचाहा उपयोग कर सके। भूंमडलीकरण, कॉरपोरेट जगत, बाजार ,विज्ञापन, मीडिया और...
View Articleहिन्दी-लघुकथा: संरचना और मूल्यांकन
हिन्दी-लघुकथा को यदि ‘कथा’ का नया, आधुनिक एवं विकसित स्वरूप मान लिया जाए तो लघुकथा की संरचना को भी मुख्यतः दो तत्त्वों में विभाजित करके उसकी तह तक पहुँचा जा सकता है। यथा 1- कथानक (कथा-वस्तु) एवं 2-...
View Articleभूमंडलीकरण के दौर में हमारी सांस्कृतिक चिन्ताएँ
भूमंडलीकरण के इस दौर में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ एशिया के सस्ते श्रम और विस्तृत बाजार को ललचाई नजरों से देख रही है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में उत्पादन और व्यापार के लिए तो आ ही रही है साथ में...
View Articleलघुकथा का गुण धर्म और पुरस्कृत लघुकथाएँ
रचनाओं पर निर्णायकों के विचार एवं लघुकथा पर अपनी बात से पूर्व लघुकथा प्रतियोगिता के आयोजन के सम्बन्ध में कुछ जानकारियाँ देना आवश्यक प्रतीत होता है। कथादेश द्वारा प्रत्येक वर्ष इस प्रतियोगिता का...
View Articleहिन्दी लघुकथा: संघर्षों में अस्मिता को तलाशता नारी चरित्र
नारीत्व की प्रतिष्ठा के बावजूद आज साहित्य में उस आवाज की खोज की जा रही है, जो नारी-व्यक्तित्व और उसकी अस्मिता की समानता का दर्जा दिलवा सके। भारतीय साहित्य में वैदिक वाचक्नवी जैसी विदुषी की तर्कशीलता...
View Articleहिन्दी लघुकथा: संघर्षां में अस्मिता को तलाशता नारी चरित्र
नारीत्व की प्रतिष्ठा के बावजूद आज साहित्य में उस आवाज की खोज की जा रही है, जो नारी-व्यक्तित्व और उसकी अस्मिता की समानता का दर्जा दिलवा सके। भारतीय साहित्य में वैदिक वाचक्नवी जैसी विदुषी की तर्कशीलता...
View Articleसमकालीन हिन्दी लघुकथा का सामाजिक परिप्रेक्ष्य
हिन्दी लघुकथा के सामाजिक वितान पर एक आलेख में पूरी बात नहीं की जा सकती। व्यापक दृष्टि से देखने पर राजनीति और परिवार की रेखाएँ भी समाज में आ मिलती हैं। यहाँ ‘समाज’ को कुछ सीमित अर्थो में लेकर...
View Articleहिन्दी-लघुकथाओं में व्यंग्य-चित्रण
हिन्दी-साहित्य में अन्य विधाओं की भाँति ही व्यंग्य भी एक स्वतंत्र विधा तो है ही, इसी के साथ व्यंग्य साहित्य में एक रस की भूमिका का भी निर्वाह करता है। यह नाटक में मिला तो नाटक व्यंग्यात्मक नाटक बन...
View Articleपुरस्कृत लघुकथाएँ : लेखकीय दायित्वबोध और अनुशासन
विभिन्न स्तरों पर हो रहे कुछ गम्भीर प्रयासों के बावजूद गुणवत्ता की दृष्टि से लघुकथा के क्षेत्र में छाया कोहासा छँटता दिखाई नहीं दे रहा। गत वर्षों की भाँति इस वर्ष भी बड़ी संख्या में लेखकों ने कथादेश...
View Articleकथा–सम्राट प्रेमचंद की लघुकथाएँ : एक दृष्टि
कथा–सम्राट प्रेमचंद की लघुकथाएँ : एक दृष्टि डॉ सतीशराज पुष्करणा वेदों में कथा–सूत्र भले ही प्राप्त होते हों, किन्तु ‘कथा’ की सही पहचान हमें ‘अग्नि पुराण’ के निम्न श्लोक से ही होती है :– आख्यायिका, कथा,...
View Articleपारस दासोत: एक प्रयोगधर्मी लघुकथाकार
कुछ रचनाकार समय के साथ नहीं चलते ; समय से आगे चलते हैं या पीछे । पारस दासोत समय से आगे चलने वाले रचनाकार है । यह रचनाकार अवरोध –विरोध की ओर आँख उठाकर नहीं देखता । इसे चलने से मतलब है । पाठक इसकी रचना...
View Articleपद्मश्री रामनारायण उपाध्याय से मुकेश शर्मा की बातचीत
जब तक समीक्षक ईमानदार नहीं होंगे,लघुकथा का समीक्षा–पक्ष पुष्ट नहीं होगा- रामनारायण उपाध्याय प्रश्न – लघुकथा का साहित्य में क्या स्थान है? उत्तर – साहित्य में जैसे उपन्यास और कहानी कथा विधा की अलग–अलग...
View Articleलघुकथाओं के सजग शिल्पकार : सुरेश शर्मा
आज वर्ष 2014 के पड़ाव पर बैठकर जब हम 1970 से अभी तक के लेखन की पड़ताल करते हैं तो एक लम्बी फिल्म की तरह सारा इतिहास निगाहों के सामने से गुजरता है। लघुकथा के शैशव काल में लघुकथा के सामने बहुत सारी...
View Articleहिन्दी लघुकथा का परिप्रेक्ष्य
पिछले कुछ वर्षों में साहित्यिक विधाओं में लघुकथा का प्रचलन बड़े जोर–शोर से हुआ है। प्रमुख कहानी–पत्रिका ‘सारिका’ द्वारा लघुकथाओं के दो विशेषांक प्रकाशित करने के बाद लेखक का ध्यान इस विधा की ओर भी...
View Articleरामेश्वर काम्बोज की अर्थगर्भी लघुकथाएँ
‘पड़ाव और पड़ताल’ भाग–2 के प्रकाशन के पश्चात् दूरभाष पर भाई मधुदीप से वार्ता के दौरान निर्देश प्राप्त हुए कि ‘पड़ाव और पड़ताल’ के आगामी खंड के लिए भाई रामेश्वर काम्बोज ‘हिंमाशु’ जी की लघुकथाओं पर मुझे...
View Articleइक्कीसवीं सदी के लघुकथाकार और उनकी लघुकथाएँ
जीवन एक अविरल धारा है जो बहते हुए आगे बढ़ती जाती है, जिसमें बहुत कुछ पीछे छूट जाता है, तो बहुत कुछ नया जुड़ता भी जाता है। वस्तुतः यही है जीवन की विकास-यात्रा । ठीक इसी प्रकार साहित्य और उसकी तमाम विधाएँ...
View Articleअतिरंजना और फैंटेसी में लिपटा क्रूर सामाजिक सत्य
सुकेश साहनी कई दशकों से हिन्दी लघुकथा साहित्य के परिवर्द्धन में सक्रिय हैं। उनकी रचनाएँ कई भाषाओं में अनूदित और चर्चित रही हैं। सुकेश का लेखकीय व्यक्तित्व अपने समशील रचनाकारों की तरह यथार्थ की पकड़ और...
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