इक्कीसवीं सदी के लघुकथाकार और उनकी लघुकथाएँ
जीवन एक अविरल धारा है जो बहते हुए आगे बढ़ती जाती है, जिसमें बहुत कुछ पीछे छूट जाता है, तो बहुत कुछ नया जुड़ता भी जाता है। वस्तुतः यही है जीवन की विकास-यात्रा । ठीक इसी प्रकार साहित्य और उसकी तमाम विधाएँ...
View Articleअतिरंजना और फैंटेसी में लिपटा क्रूर सामाजिक सत्य
सुकेश साहनी कई दशकों से हिन्दी लघुकथा साहित्य के परिवर्द्धन में सक्रिय हैं। उनकी रचनाएँ कई भाषाओं में अनूदित और चर्चित रही हैं। सुकेश का लेखकीय व्यक्तित्व अपने समशील रचनाकारों की तरह यथार्थ की पकड़ और...
View Articleविक्रम सोनी की लघुकथाएँ
आठवें दशक की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि डॉ. सतीश दुबे के सम्पादन में 1979 में प्रकाशित ‘आठवे दशक की लघुकथाएँ’ है,हालाँकि उसी समय सशक्त हस्ताक्षरों के बीच विक्रम सोनी को इस संकलन में न लेना आश्चर्य की बात...
View Articleलघुकथा का शिल्पविधान
डॉ0शंकर पुणतांबेकर मूलत: उसके शिल्प से ही जानी जाती है और उसमें कोई एक तत्त्व प्रधान होता है। यथा कविता में कथा और संवाद के रहते भी उसका प्रधान तत्त्व लय अथवा छंद है, नाटक में कथा और लय के रहते भी उसका...
View Articleलघुकथा की विधागत शास्त्रीयता और पुरस्कृत लघुकथाएँ
15 मार्च 2016 को साहित्य अकादमी और फिर 27 मार्च को हिन्दी अकादमी द्वारा लघुकथा पाठ के आयोजन को लघुकथा की विकास यात्रा में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। इस उपलब्धि के पीछे जहाँ एक ओर...
View Articleहिन्दी–लघुकथा में संवेदना
‘संवेदना’ से पूर्व ‘अनुभूति’ को समझना अनिवार्य है, कारण ये लगभग एक ही भाव के दो शब्द हैं, किन्तु पिफर भी भावों के स्तर में दोनों में बहुत अन्तर है। ‘अनुभूति’ को अंग्रेजी फ़ीलिन्ग कहते हैं किन्तु कैसी...
View Articleसतीशराज पुष्करणा जी की लघुकथाएँ
हम सबने एक कहावत बहुत बार सुनी होगी-देखन में छोटी लगे, घाव करे गम्भीर- अगर मैं कहूँ कि यह कहावत एक अलग ही अर्थ में लघुकथा की विधा पर बिल्कुल सटीक बैठती है, तो शायद मेरी बात से आप सब भी इत्तेफ़ाक़ रखेंगे।...
View Articleभारतीय लघुकथाओं में मनोविज्ञान
मेरा बचपन संयुक्त परिवार में बीता है। एक घटना याद आ रही है। सुबह उठ कर देखता हूँ–माँ रसोई में नहीं है बल्कि रसोई के बाहर बने स्टोर में अलग–थलग बैठी हैं। दादी माता जी को वहीं चाय नाश्ता दे रही है। मुझे...
View Articleपारस दासोत की लघुकथाओं में स्त्री
समूचे प्राणिजगत में दो गुण मूल रूप से पाए जाते हैं—जीवन-रक्षा और जाति-रक्षा। जहाँ तक मनुष्य की बात है, जीवन-रक्षा के लिए वह एक स्थान को छोड़कर किसी भी अन्य स्थान तक जा सकता है, भक्ष्य-अभक्ष्य कुछ भी...
View Articleसंश्लिष्ट सृजन-प्रक्रिया
रचनाकार का सोचा हुआ आशय अभिप्राय, विचार या अनुभूति रचना के माध्यम से पाठक तक कैसे संप्रेषित हो पाता है? अपनी बात वह दूसरों तक कैसे और कितने सफल एवं सही और किस रूप में संप्रेषित कर पाता है? इसका जायजा...
View Articleहिन्दी लघुकथा में समीक्षा की समस्याएँ एवं समाधन
हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार-समीक्षा अर्थात् अच्छी तरह देखना, जाँच करना-सम्यक् ईक्षा या ईक्षाणम् । किसी वस्तु, रचना या विषय के सम्बन्ध् में सम्यक् ज्ञान प्राप्त करना, प्रत्येक तत्त्व का विवेचन करना...
View Articleलघुकथा और शास्त्रीय सवाल
लघुकथा ज्यों–ज्यों फैलाव ले रही है, त्यों–त्यों उससे कुछ सवालों को अकारण ही जोड़कर स्वयं को उभारने की कोशिश भी होती रही है। ऐसी स्थिति में रचना और आलोचना तथा इसके रिश्तों पर बुरा असर पड़ा है। वे...
View Articleसोचने को विवश करती लघुकथाएँ
हरी- भरी वादियाँ, दूर दूर तक फैला वितान,एक सुनहरी आभा में मिलते धरती गगन, और उस आभा में आलोकित हो क्षितिज को पकड़ने दौड़ते बालकों से हम। हरी भरी वादियों में दौड़ते हुए कहीं किसी पत्थर से ठोकर हो जाती...
View Articleहिन्दी-लघुकथाओं में स्त्री की स्थिति
सृष्टि में स्त्री-पुरुष दोनों का अपना-अपना महत्त्व है । यानी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इन्हें हम बराबर भी नहीं कह सकते, किन्तु यह सत्य है कि दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं। दोनों का अपना-अपना महत्त्व...
View Articleस्मृति शेष मिथिलेशकुमारी मिश्र –
नवें दशक के अन्त में जिन कतिपय महत्त्वपूर्ण लोगों ने लघुकथा के विकास मं योगदान देना आरंभ किया, उनमें एक नाम डॉ. मिथिलेशकुमारी मिश्र का है। हिन्दी-लघुकथा सृजन से पूर्व उनका एक लघुकथा-संग्रह संस्कृत...
View Articleलघुकथा में शिल्प की भूमिका
शिल्प ही किसी रचना की ताकत है और रचनाकार की पहचान भी | शिल्प यानि गढ़न, अंदाजे -बयाँ, कहन पद्धति, रचना कौशल, रचनाकार द्वारा स्वयं को तलाशने की बेचैनी | लघुकथा के संदर्भ में बात करें तो हम कह सकते हैं...
View Articleसतीशराज पुष्करणा जी की लघुकथाएँ
हम सबने एक कहावत बहुत बार सुनी होगी-देखन में छोटी लगे, घाव करे गम्भीर- अगर मैं कहूँ कि यह कहावत एक अलग ही अर्थ में लघुकथा की विधा पर बिल्कुल सटीक बैठती है, तो शायद मेरी बात से आप सब भी इत्तेफ़ाक़ रखेंगे।...
View Articleभारतीय लघुकथाओं में मनोविज्ञान
मेरा बचपन संयुक्त परिवार में बीता है। एक घटना याद आ रही है। सुबह उठ कर देखता हूँ–माँ रसोई में नहीं है बल्कि रसोई के बाहर बने स्टोर में अलग–थलग बैठी हैं। दादी माता जी को वहीं चाय नाश्ता दे रही है। मुझे...
View Articleपारस दासोत की लघुकथाओं में स्त्री
समूचे प्राणिजगत में दो गुण मूल रूप से पाए जाते हैं—जीवन-रक्षा और जाति-रक्षा। जहाँ तक मनुष्य की बात है, जीवन-रक्षा के लिए वह एक स्थान को छोड़कर किसी भी अन्य स्थान तक जा सकता है, भक्ष्य-अभक्ष्य कुछ भी...
View Articleसंश्लिष्ट सृजन-प्रक्रिया
रचनाकार का सोचा हुआ आशय अभिप्राय, विचार या अनुभूति रचना के माध्यम से पाठक तक कैसे संप्रेषित हो पाता है? अपनी बात वह दूसरों तक कैसे और कितने सफल एवं सही और किस रूप में संप्रेषित कर पाता है? इसका जायजा...
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